पुरानी संसद की वास्तुकला

भारतीय संसद भवन, दिल्ली के राजपथ पर स्थित, भारतीय लोकतंत्र की जीवंत प्रतीक है। यह भवन न केवल संसदीय कार्यों का मञ्च है बल्कि भारतीय ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को भी प्रकट करता है।

लुटियंस और बेकर द्वारा डिज़ाइन किया गया यह गोलाकार भवन, ब्रिटिश सम्राटीय युग में इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल के रूप में कार्य करता रहा और भारत को स्वतंत्रता मिलने पर यहाँ भारतीय संविधान को अनुमोदित किया गया था।

जब हम संसद भवन की वास्तुकला पर ध्यान देते हैं, तो हमें महसूस होता है कि इसकी डिज़ाइन और संरचना भारतीय वास्तुशिल्प से प्रेरित है। खास बात यह है कि मध्य प्रदेश के मितावली स्थित चौसठ योगिनी मंदिर का इस वास्तुकला में अदृश्य संबंध हो सकता है। यह मंदिर, जो 14वीं शताब्दी में निर्मित हुआ था, भारतीय वास्तुकला की एक उत्कृष्टता है, जिसमें विशेष तत्वों का समावेश है, जैसे कि बिना छत वाला हाइपेथ्रल डिज़ाइन।

ऐसा माना जाता है कि लुटियंस और बेकर ने संसद भवन की डिज़ाइन में चौसठ योगिनी मंदिर से प्रेरणा ली थी। चाहे यह संबंध वास्तव में हो या नहीं, यह सच है कि भारतीय संसद भवन हमें हमारी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत की याद दिलाता है।

संग्रहालयों, पुरातात्विक स्थलों और अन्य स्मारकों की तरह, संसद भवन भी भारत के विविधता, सांस्कृतिक धरोहर और लोकतांत्रिक परंपराओं का प्रतीक है। इसकी वास्तुकला, इतिहास और उसका महत्व हमें एक ऐसे देश की याद दिलाता है जहाँ विविधता में एकता की भावना हमेशा जिंदा रहती है।

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