संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष कि रिपोर्ट 

जनसांख्यिकीय बदलाव, विशेष रूप से एक देश के बुजुर्ग जनसंख्या में वृद्धि, उस देश की समाजिक-आर्थिक संरचना पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है। भारत अभी ऐसे ही महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय परिवर्तन का सामना कर रहा है।

इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज और संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष द्वारा संयुक्त रूप से जारी की गई “इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2023” के अनुसार, भारत में 2050 तक जनसंख्या के 20 प्रतिशत से अधिक बुजुर्ग होंगे।

इस तरह की तेजी से बढ़ती बुजुर्ग जनसंख्या की वृद्धि भारत के लिए कई चुनौतियाँ और संभावनाएं प्रस्तुत करती है। एक ओर जहाँ बुजुर्ग जनसंख्या की बढ़ती संख्या स्वास्थ्य सेवाओं, पेंशन और सामाजिक सुरक्षा प्रणाली पर दबाव डाल सकती है, वहीं यह भारतीय समाज में परंपरागत ज्ञान और अनुभव का संचार भी सुनिश्चित करती है।

भारत को इस बदलाव की चुनौतियों का सामना करते हुए, उचित नीतियाँ और प्रक्रियाएँ तैयार करने की जरूरत है ताकि बुजुर्ग जनसंख्या को समझौते बिना उचित सेवाएं प्रदान की जा सकें।

जनसांख्या का संरचन और उसकी वृद्धि दर एक देश के विकास और समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। भारत, जो विश्व की सबसे बड़ी लोकतंत्र में से एक है, अभी ऐसे ही एक महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय परिवर्तन का सामना कर रहा है।

हाल की रिपोर्टों में इसे स्थायित किया गया है कि 0-14 वर्ष की आयु के बच्चों की जनसंख्या की तुलना में वृद्ध जनसंख्या में वृद्धि हो रही है। इसका अर्थ है कि आने वाले समय में भारत की युवा जनसंख्या की प्रतिशत अनुपात में घटती जा रही है जबकि वृद्ध जनसंख्या बढ़ रही है।

इस जनसंख्या परिवर्तन के कई कारण हैं। मेडिकल सुविधाओं में सुधार, स्वास्थ्य जागरूकता और बेहतर जीवन शैली के कारण लोग अब अधिक समय तक जीवित रहते हैं। साथ ही, पारिवारिक नियोजन और शिक्षा के लिए जागरूकता की वजह से जन्म दरें भी घट रही हैं।

अधिक चिंताजनक तथ्य यह है कि कामकाजी उम्र की जनसंख्या (15-59 वर्ष) में अनुमानित गिरावट हो सकती है। यह जीवन की उस चरण में होते हुए लोग हैं जो अर्थशास्त्र में सबसे अधिक योगदान करते हैं। अगर उनकी संख्या घटती है, तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डाल सकता है।

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