G20 देशों द्वारा जलवायु के लिये उठाय गय कदम

जलवायु परिवर्तन आज का सबसे बड़ा चुनौतीपूर्ण मुद्दा है, जिसका समाधान दुनिया की सभी प्रमुख शक्तियों को मिलकर करना होगा। इसी प्रकार, जी20 जैसे समूहों की नीतियां और निर्णय इस मुद्दे पर प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर सकते हैं। इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईआईएसडी) की हाल की रिपोर्ट इसी मुद्दे की गंभीरता को उजागर करती है।

रिपोर्ट के अनुसार, जी20 सरकारें ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण और इसके बाद ऊर्जा मूल्य संकट के चलते जीवाश्म ईंधन उद्योग को 1.4 ट्रिलियन डॉलर की सब्सिडी प्रदान की। यह निवेश उद्योग को आर्थिक रूप से समर्थन प्रदान करने का प्रतीत होता है, लेकिन वास्तव में यह जीवाश्म ईंधन पर हमारी निर्भरता को बढ़ाता है।

इस निवेश का परिणाम है कि ऊर्जा संकट की संभावना बढ़ जाती है, क्योंकि बाजार में अस्थिरता और भू-राजनीतिक जोखिम बढ़ जाते हैं। और जब यह संकट बढ़ता है, तो आम आदमी पर उसका प्रभाव पड़ता है – चाहे वह ऊर्जा की बढ़ती कीमतों के रूप में हो या ऊर्जा की घातक कमी के रूप में।

इसके अलावा, जी20 देशों के द्वारा की गई इस तरह की निवेश से पेरिस समझौते के तहत उनकी प्रतिबद्धताओं की उलंघना होती है। यह निवेश स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में होने वाली प्रगति को धीमा करता है और हमें जलवायु परिवर्तन के खतरों के और अधिक समीप ले जाता है।

रिपोर्ट स्पष्ट रूप से इस बात पर जोर देती है कि वित्तीय संसाधनों को स्वच्छ ऊर्जा और सामाजिक सुरक्षा की ओर पुनर्निर्देशित करना चाहिए। जी20 सरकारों को अपनी प्रतिबद्धताओं पर अमल करने की जरूरत है, और इसे अब करने का समय है।

अंत में, जब तक हम जीवाश्म ईंधन से अपनी निर्भरता को समाप्त नहीं करते और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर नहीं बढ़ते, जलवायु परिवर्तन के प्रति हमारी प्रतिबद्धताएं सिर्फ शब्दों में ही रह जाएंगी। और जैसा कि आईआईएसडी की रिपोर्ट दिखाती है, इस मुद्दे पर हमें त्वरित कार्रवाई करनी चाहिए।

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