जब भी हम भारतीय कला और संस्कृति की चर्चा करते हैं, चोल वंश का योगदान उसमें अमिट है। चोल वंश के राजा और उनकी प्रजा की भारतीय कला में दी गई विरासत को समझते हुए, नई दिल्ली के प्रगति मैदान में 27 फुट ऊंची नटराज प्रतिमा की स्थापना की गई।
जी20 नेताओं के स्वागत के अवसर पर इस महाकाव्य प्रतिमा को प्रदर्शित किया गया। यह प्रतिमा, जो विश्व की सबसे ऊंची नटराज प्रतिमा है, स्वामीमलाई, तमिलनाडु के कुशल शिल्पकारों द्वारा तैयार की गई। 18 टन वजनी यह अष्टधातु की मूर्ति भारतीय शिल्प और तकनीक की अद्वितीयता का प्रतीक है।
यह प्रतिमा चिदम्बरम, कोनेरीराजपुरम और तंजावुर के बृहदेश्वर मंदिर में पाई जाने वाली प्राचीन नटराज मूर्तियों से प्रेरित है, जिनका निर्माण 9वीं से 11वीं शताब्दी में हुआ था। चोल राजवंश ने भारतीय कला में अद्वितीयता की पराकाष्ठा पर पहुंचाई थी। उनकी शैव भावनाओं को उनके द्वारा तैयार की गई प्रतिमाओं में देखा जा सकता है।
यह नई प्रतिमा न सिर्फ भारतीय इतिहास और संस्कृति को जीवंत करती है, बल्कि विश्व को भारतीय शिल्प, कला और तकनीक की अद्वितीयता को प्रदर्शित करती है। इसके साथ ही, यह प्रतिमा चोल वंश की कलात्मकता और उनके द्वारा अपनाई गई जटिल लॉस्ट-वैक्स कास्टिंग तकनीक को भी मनाती है।
समाप्तिवाक्य: यह 27 फुट ऊंची नटराज प्रतिमा न सिर्फ एक धार्मिक प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, इतिहास और कला की महत्वपूर्ण विरासत को भी प्रकाश में लाती है।
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