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नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने आज नई दिल्ली में “नेशनल बायो-एनर्जी प्रोग्राम” पर संगोष्ठी का आयोजन किया। यह आयोजन ‘आजादी के अमृत महोत्सव’ के क्रम में यूनीडू और जीईएफ ने मिलकर किया था। उद्घाटन सत्र के दौरान बिजली एवं नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री श्री आरके सिंह ने राष्ट्रीय जैव-ऊर्जा कार्यक्रम के सार-संक्षेप का अनावरण किया तथा ‘बायो-ऊर्जा’ और ‘बायो-गैस’ पोर्टलों का शुभारंभ किया। अपने उद्घाटन व्याख्यान में श्री आरके सिंह ने बायो-गैस की स्वच्छ ऊर्जा से खाना पकाने, ताप बिजली घरों में बायो-मास की टिकिया और ईंटों के इस्तेमाल तथा यातायात के लिये बायो-सीएनजी की उपयोगिता पर प्रकाश डाला। उन्होंने जोर देते हुये कहा कि किसानों की आय के अतिरिक्त स्रोत के रूप में बेशी बायो-मास के लाभ ग्रामीण घरों तक पहुंचने चाहिये।
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने हाल ही में घोषणा की कि राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम 2025-26 तक लागू किया जाएगा।

राष्ट्रीय जैव ऊर्जा कार्यक्रम का उद्देश्य :
नेशनल बायोएनर्जी प्रोग्राम का उद्देश्य बायोएनर्जी के उपयोग को बढ़ावा देना और सर्कुलर इकोनॉमी पर आधारित एक निवेशक-अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र बनाना है। बायोएनर्जी एक बार रहने वाले जैविक पदार्थों से प्राप्त होती है जिसे बायोमास कहा जाता है जिसका उपयोग परिवहन ईंधन, गर्मी, बिजली और ऐसे अन्य उत्पादों के उत्पादन के लिए किया जाता है।
कार्यक्रम के पहले चरण को भारत सरकार द्वारा 858 करोड़ रुपये के कुल बजट के साथ अनुमोदित किया गया था।
कार्यक्रम में तीन उप-योजनाएं होंगी।
- अपशिष्ट से ऊर्जा कार्यक्रम
- बायोमास कार्यक्रम
- बायोगैस कार्यक्रम
- अपशिष्ट से ऊर्जा कार्यक्रम
(शहरी, औद्योगिक और कृषि अपशिष्टों / अवशेषों से ऊर्जा पर कार्यक्रम) का उद्देश्य ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए औद्योगिक, घरेलू और कृषि क्षेत्रों द्वारा उत्पादित कचरे का उपयोग करना है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उप-योजना बड़े बायोगैस, बायो-सीएनजी और बिजली संयंत्र स्थापित करने में मदद करेगी।
- बायोमास कार्यक्रम
बायोमास के लाभों को देखते हुए, यह देश के लिए सदैव ही एक महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत रहा है। यह नवीकरणीय है, व्यापक रूप से उपलब्ध है, कार्बन-उदासीन है और ग्रामीण क्षेत्रों में महत्वपूर्ण रोजगार प्रदान करने की क्षमता रखता है। बायोमास दृढ़ ऊर्जा प्रदान करने में भी सक्षम है। देश में कुल प्राथमिक ऊर्जा उपयोग का लगभग 32% अभी भी बायोमास से प्राप्त किया जाता है और देश की 70% से अधिक जनसंख्या, अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए इसी पर निर्भर है। नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने भारतीय संदर्भ में बायोमास ऊर्जा की क्षमता और भूमिका का आकलन किया है और इसलिए अधिकतम लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में इसके उपयोग हेतु कुशल तकनीकों को बढ़ावा देने के लिए कई कार्यक्रमों की शुरुआत की है। बायोमास के कुशल उपयोग के लिए, चीनी मिलों में बैगास आधारित सहउत्पादन और बायोमास बिजली उत्पादन को बायोमास बिजली और सहउत्पादन कार्यक्रम के अंतर्गत लिया गया है।
- बायोगैस कार्यक्रम
जैव-अपघटनीय कार्बनिक पदार्थ/अपशिष्ट जैसे कि पशुओं का गोबर, खेतों से बायोमास, बगीचों, रसोई, उद्योग, मुर्गी की बीट, मल-मूत्र और पालिका अपशिष्ट को बायोगैस संयंत्र में एक वैज्ञानिक प्रक्रिया जिसे अवायवीय पाचन (ए.डी.) कहा जाता है में उपयोग करके बायोगैस का उत्पादन किया जाता है। बायोगैस संयंत्र डिजाइन कई कारकों पर निर्भर करता है और संसाधित किए जाने वाले फीड स्टॉक का सर्वाधिक महत्व है। बायोगैस कृषि अपशिष्ट, पशुओं का गोबर, मुर्गी की बीट, नगरपालिका अपशिष्ट, पौध सामग्री, सीवेज, हरित अपशिष्ट या भोजन/रसोई का अपशिष्ट आदि कच्चे माल से, ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में जैव अपघटनीय कार्बनिक पदार्थ के अपघटन/विघटन द्वारा निर्मित गैसों (मुख्य रूप से मीथेन (CH4) और कार्बन डाई-ऑक्साइड (CO2) और गौण मात्रा में हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S), नमी) का मिश्रण होती है। बायोगैस का कैलोरी मान लगभग 5000 किलोकैलोरी प्रति घन मीटर (मी3) होता है। बायोगैस संयंत्रों से उप-उत्पाद के रूप में उत्पन्न होने वाला पाचित घोल कृषि में उपयोग के लिए पोषक तत्वों से समृद्ध जैविक खाद का एक अच्छा स्रोत होता है। इससे न केवल फसल की पैदावार में सुधार करने में सहायता मिलती है बल्कि मिट्टी का स्वास्थ्य भी ठीक बना रहता है।
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